जनपद कन्नौज में तहसील छिबरामऊ ब्लॉक तालग्राम ग्राम पंचायत टिकरी कलसान के ही गाव मस्तियापुर माता महाकाली देवी मंदिर में भागवत कथा का कथा वाचक कुमारी निशा शास्त्री और रूपा शास्त्री जी के मुखारविंद से भागवत कथा चल रही है
आज कार्तिक मास की प्रतिपदा को यानि 21 मार्च 2025 को इस दिन शुक्रवार को मस्तियापुर गोवर्धन पर्व मनाया गया गोवर्धन पूजन के त्योहार का आरंभ द्वापर युग से माना जाता है क्योंकि कथा के अनुसार भगवान कृष्ण ने इंद्रदेव का अंहकार दूर करने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा लिया था और सभी ब्रज वासियों की रक्षा की थी, तो चलिए जानते हैं
आज यानि कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजन किया जाता है। विशेषतौर पर मनुष्यों के द्वारा प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए गोवर्धन का यह पर्व मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, मस्तियापुर में गोवर्धन पर्व आज यानि 21 मार्च 2025 को दिन शुक्रवार को मनाया गया। निशा शास्त्री के मुखार बिंदु से इस दिन गिरिराज यानी गोवर्धन व भगवान कृष्ण के पूजन का विधान है। इस दिन को अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन अन्नकूट का भोग लगाने की परंपरा है। इस दिन घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत और पशुधन की आकृति बनाई जाती है व विधि-विधान के साथ पूजन किया जाता है। गोवर्धन पूजन की कथा द्वापर युग से जुड़ी हुई है। जब भगवान कृष्ण ने देवराज इंद्र का अंहकार दूर करने के लिए लीला रची थी। तभी से गोवर्धन पूजन की परंपरा आरंभ हुई। तो चलिए जानते हैं गोवर्धन पूजन करने के पीछे की कथा।
एक बार इंद्रदेव को अभिमान हो गया, तब लीलाधारी श्री कृष्ण ने एक लीला रची। एक दिन श्री कृष्ण ने देखा कि सभी ब्रजवासी तरह-तरह के पकवान बना रहे हैं पूजा का मंडप सजाया जा रहा है और सभी लोग प्रातःकाल से ही पूजन की सामाग्री एकत्रित करने में व्यस्त हैं। तब श्री कृष्ण ने योशदा जी से पूछा, ”मईया” ये आज सभी लोग किसके पूजन की तैयारी कर रहे हैं, इस पर मईया यशोदा ने कहा कि पुत्र सभी ब्रजवासी इंद्र देव के पूजन की तैयारी कर रहे हैं। तब कन्हैया ने कहा, कि सभी लोग इंद्रदेव की पूजा क्यों कर रहे हैं, तो माता यशोदा उन्हें बताते हुए कहती हैं, क्योंकि इंद्रदेव वर्षा करते हैं और जिससे अन्न की पैदावार अच्छी होती है और हमारी गायों को चारा प्राप्त होता है तब श्री कृष्ण ने कहा कि वर्षा करना तो इंद्रदेव का कर्तव्य है। यदि पूजा करनी है तो हमें गोवर्धन पर्वत की करनी चाहिए, क्योंकि हमारी गायें तो वहीं चरती हैं और हमें फल-फूल, सब्जियां आदि भी गोवर्धन पर्वत से प्राप्त होती हैं। इसके बाद सभी ब्रजवासी इंद्रदेव की बजाए गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। इस बात को देवराज इंद्र ने अपना अपमान समझा और क्रोध में आकर प्रलयदायक मूसलाधार बारिश शुरू कर दी। जिससे हर ओर त्राहि-त्राहि होने लगी। सभी अपने परिवार और पशुओं को बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे। तब ब्रजवासी कहने लगे कि यह सब कृष्णा की बात मानने का कारण हुआ है, अब हमें इंद्रदेव का कोप सहना पड़ेगा।
भगवान कृष्ण ने इंद्रदेव का अंहकार दूर करने और सभी ब्रजवासियों की रक्षा करने हेतु गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा लिया। तब सभी ब्रजवासियों ने गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण ली। इसके बाद इंद्रदेव को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने श्री कृष्ण से क्षमा याचना की। और मस्तियापुर का उद्धार किया