नाग नागिन का जोड़ा, करीब 400 वर्षों से चली आ रही परंपरा
, बुरहानपुर के उखड्ड गांव में उतावली नदी को पार कर घने जंगलों से होकर भक्त नाग देवता के देवालय पहुंचते है। जहां चतुर्थी की रात और पंचमी के प्रारंभ होते ही लोग पूजा करने अंधेरों में निकल जाते हैं। यहां जाने पर दो विशाल नाग देवता की बांबी होती है, जिस पर लोग पूजा कर मन्नत मानते हैं। मन्नत पूर्ण होने पर नाग देवता का जोड़ा और चांदी का छत्र चढ़ाते है
बुरहानपुर से 7 किमी दूर उतावली नदी के पार उखड्ड गांव में चतुर्थी की रात और पंचमी के प्रारंभ होते ही लोग करीब 396 वर्ष पुरानी परंपरा निभाने निकल पड़ते है। उनके हाथों में टोकरी में बंद नाग का जोड़ा होता हैं और मैदे की पूरी जो कि एक विषेष प्रकार के बांस के खाने से बनी हुई होती हैं। उस पर पूरियां टंगी होती हैं। यह पूरी मैदे और घी की बनी होती हैं। विश्व में एकमात्र स्थान है, जहां इस प्रकार का प्रसाद चढ़ता है। भक्तों को इस नाग देवता की चिकनी मिट्टी से बनी बांबी की पूजा करने कहा जाता हैं। इस बांबी में नाग देवता वर्ष भर निवास करते हैं और आज के दिन केवल नसीब वालों को ही दर्शन देते हैं। यहां जो सच्चे मन से मन्नत उसकी मुराद भी पूर्ण होती हैं।