प्राकृतिक खेती से श्रीमती लक्ष्मीबाई घाघरे दीदी बनीं लखपति: ड्रोन दीदी बनकर प्राप्त कर रही है अतिरिक्त आय
छिन्दवाड़ा/27 मई 2025/ छिन्दवाड़ा जिले के बिछुआ विकासखंड के झांमटा गाँव की निवासी श्रीमती लक्ष्मीबाई पति श्री महेश घाघरे ने यह सिद्ध कर दिया है कि यदि निष्ठा, मेहनत और सही तकनीक के साथ खेती की जाए तो प्राकृतिक संसाधनों के सहारे भी आत्मनिर्भर बना जा सकता है। श्रीमती घाघरे ने 1 हेक्टेयर भूमि में प्राकृतिक खेती की शुरुआत की, जिसमें वर्तमान में अरहर की फसल लहरा रही हैं। प्राकृतिक खेती के अंतर्गत वे जीवामृत, घनजीवामृत, ब्रम्हास्त्र, अग्निआस्त्र, वेस्ट डी-कंपोज़र तथा अजोला जैसे जैविक उत्पादों का उपयोग करती हैं।
प्राकृतिक खेती अपनाने के बाद – प्राकृतिक अरहर उत्पादन में 30,000 रुपये की लागत से 1 लाख रुपये की आय प्राप्त हुई, जिससे 70,000 रुपये का शुद्ध लाभ हुआ। वर्मी कम्पोस्ट निर्माण से 35,000 रुपये की लागत पर 80,000 रुपये की आय हुई, जिससे 45,000 रुपये का लाभ अर्जित किया। केंचुआ विक्रय से मात्र 5,000 रुपये की लागत पर 55,000 रुपये की आय हुई, जिससे 50,000 रुपये का शुद्ध लाभ मिला। इस तरह कुल 70,000 रुपये की लागत पर श्रीमती लक्ष्मीबाई ने 2.35 लाख रुपये की आय प्राप्त की और 1.65 लाख रुपये का शुद्ध लाभ अर्जित किया।
तकनीकी नवाचार और सम्मानजनक भूमिका – श्रीमती लक्ष्मीबाई को कृषि विभाग द्वारा “नमो ड्रोन दीदी” योजना से जोड़ा गया है। इस योजना के तहत उन्हें दक्ष इंडिया की सहायता से ड्रोन प्रदान किया गया, जिससे उन्होंने लगभग 15-20 कृषकों के खेतों में प्रति एकड़ 500 रुपये की दर से ड्रोन तकनीक का उपयोग कर अतिरिक्त आय प्राप्त की। इस पहल से वे न केवल एक सफल महिला कृषक बनी हैं, बल्कि आधुनिक कृषि तकनीक की उपयोगकर्ता भी बन गई हैं। श्रीमती लक्ष्मीबाई घाघरे की यह सफलता की कहानी आज कई महिला कृषकों के लिए एक प्रेरणा बन गई है। उनका यह प्रयास दिखाता है कि परंपरागत ज्ञान और आधुनिक तकनीक का संतुलन एक नई क्रांति ला सकता है।
*संवाददाता शुभम सहारे छिंदवाड़ा*