छिंदवाड़ाः- भारतीय बौद्ध महासभा के द्वारा शहर के गोधूली वृद्धाश्रम में भारत की पहली महिला शिक्षिका और नारी मुक्ति की प्रणेता राष्ट्माता सावित्री बाई फुले के जन्म दिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया गया। इस अवसर पर सर्वप्रथम सावित्री बाई फुले के छायाचित्र पर माल्यार्पण भारतीय बौद्ध महासभा प्रदेश उपाध्यक्ष एड. रमेश लोखण्डे जिला उपाध्यक्ष एड. राजेश सांगोड़े, एड. प्रशांत गजभिये, संगठक वसंता सोमकुवंर, समाजसेवी सुभाष गोंडाने, मोतीराम सुखदेवे वंदना सोमकुंवर, ममता लोखंडे, रमाबाई सुखदेवे, जयश्री सोमकुंवर, अनिल गजभिये, डॉ.अम्बेडकर स्टूडेंट यूनियन अध्यक्ष नीलेश मांडेकर, सामाजिक कार्यकर्ता संदीप गोलाईत, अंकित बिहारे, नवीन नागवंशी, नवनीत डेहरिया, आनंद नागवंशी संदीप अहिरवार, अनाया सोमकुंवर सहित कई पदाधिकारियों द्वारा किया गया, तदोपरांत वृद्धाश्रम के वृद्ध जनों का पुष्पगुच्छ प्रदान कर स्वागत किया गया। इस अवसर पर भारतीय बौद्ध महासभा के प्रदेश उपाध्यक्ष एड. रमेश लोखंडे एवं अनाया सोमकुवर को उनके जन्म दिवस के अवसर पर उपस्थित शुभचिंतको एवं वृद्धजनो द्वारा जन्मदिवस की बधाईया प्रेषित की गई। श्री लोखंडे द्वारा वृद्धजनों से आशीर्वाद प्राप्त कर बधाईकर्ताओ का आभार व्यक्त किया सावित्रीबाई फुले जयंती पर वृद्धजनों को संबोधित करते हुये प्रदेश उपाध्यक्ष एड. रमेश लोखंडे द्वारा कहा कि हमारे देश में धार्मिक षडयंत्रो, छुआछूत, जातिवाद अंधविश्वासो के कारण समाज का बहुत बड़ा हिस्सा शिक्षा से वंचित रहा, धार्मिक अंधविश्वास, रूढ़िवाद अस्पृश्यता, अछूतो खासतौर से सभी वर्ग की महिलाओं पर मानसिक शारीरिक, अत्याचार चरम पर थे ऐसी विषम परिस्थितियों में सावित्रीबाई फुले द्वारा अपने निस्वार्थ त्याग सामाजिक प्रतिबद्धता वैचारिक स्पष्टता, सरलता तथा अपने अथक सार्थक प्रयासो से महिलाओ और शोषित पीड़ित समाज को शिक्षा देने के लिये अभियान चलाया तथा अपने पति के साथ मिलकर उन्होने पूना में लड़कियो के लिये पहला स्कूल 1948 में खोला गया तत्पश्चात् 17 स्कूल और खोले गये। उन्होने महिलाओ की स्थिति में सुधार लाने के लिये अहम भूमिका निभाई और भारत में महिला शिक्षा की अगुवा बनी। सावित्रीबाई फुले को भारत की सबसे पहली आधुनिक नारीवादियो मेे से एक माना जाता है। उन्होने बाल विवाह सती प्रथा बेटियो को जन्म लेते ही मार देना या उनकी भ्रूण हत्या कर देना, विधवा स्त्री के साथ, कई प्रकार से अनुचित व्यवहार अनमेल विवाह, बहुपत्नी विवाह आदि कुप्रथाये समाज में व्याप्त थी, जिन्हे समाप्त करने के लिये सावित्रीबाई फूले द्वारा जन अभियान चलाकर समाप्त किया। हिंदू स्त्री के विधवा होने पर उसका सिर मुंडवा दिया जाता था। सावित्रीबाई फूले ने नाईयों से विधवाओ के बाल न काटने का अनुरोध किया। तथा एक व्यापक आंदोलन चलाकर विधवा स्त्रियों के बाल नही काटने के नाई लोगो से प्रतिज्ञा दिलवाई। फूले दम्पत्ति द्वारा आत्महत्या करने जाती हुई एक विधवा ब्राम्हण काशीबाई जो कि विधवा होने के बाद भी मॉ बनने वाली थी। उनको आत्महत्या करने से रोका तथा उसकी प्रसूती अपने घर पर करवाकर उसके बच्चे यशवंत को दत्तक पुत्र के रूप में गोद लिया दत्तक पुत्र यशवंतराव को पढ़ा लिखाकर डॉक्टर बनाया। आज संपूर्ण देश को सामाजिक परिवर्तन करने वाली समाजसेविका सावित्रीबाई फूले के विचारो पर चलने की आवश्यकता बताई तथा शहर के वृद्धाश्रम में शिक्षा की प्रेरणास्त्रोंत सावित्रीबाई फूले की प्रतिमा गोधूली वृद्धाश्रम में लगाये जाने हेतु शासन-प्रशासन से मांग की। समारोह समाप्ति पश्चात् वृद्धाश्रम में निवासरत वृद्धजनों को ब्रेड, फल एवं मिष्ठान्न वितरित कर सावित्रीबाई फुले जयंती एवं नववर्ष की शुभकामनाये वृद्धजनों एवं संपूर्ण देशवासियों को प्रेषित की गई।
*संवाददाता शुभम सहारे छिंदवाड़ा*