किसान भाइयों के लिए गेहूं की फसल एक मुख्य फसल का काम करती है जिस पर ज्यादातर किसानों की आर्थिक स्थिति टिकी होती है । इस सब को दृष्टिगत रखते हुए यदि गेहूं की फसल में जड़ एवं पत्ती माहू के लक्षण जैसे जड़ पर रहकर जड़ों से रस चूसना एवं तने व पत्तियों पर रहकर उनका रस चूसते हैं एवं शर्करायुक्त पदार्थ जिसे हनीड्यू कहते हैं, का उत्सर्जन करते हैं जिससे पत्तियों पर राख जैसी कालिख लग जाती है और प्रकाश संश्लेषण न होने के कारण पौधा पीला पड़ जाता है जिससे किसानों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है जड़ माहू द्वारा 15 से 20 प्रतिशत एवं पत्ती माहू द्वारा 3 से 21प्रतिशत नुकसान का सामना किसान भाइयों को गेहूं की फसल में उठाना पड़ सकता है जिससे बचाव हेतु किसान श्री रूपेंद्र सिंह ठाकुर एवं श्री नोने लाल साहू के साथ पी.एच.डी. रिसर्चर, द्वारका प्रसाद अठया, कीटशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर द्वारा किसानों के लिए उपयोगी साबित होंगे जरूरत से ज्यादा यूरिया का उपयोग ना करें,
खरपतवारो का समुचित निपटान, पीले चिपचिपी ट्रैप का प्रयोग करें, नीम के तेल का 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें। जब कीट की संख्या आर्थिक क्षति स्तर, 10 से 15 माहू प्रति शूट से अधिक हो जाए तो इमिडाक्लोप्रिड 1.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी के हिसाब से पहला स्प्रे करें तथा दूसरा स्प्रे जरूरत पड़ने पर 40 ग्राम थायमेथाक्जाम प्रति एकड़ उपयोग करें । प्रकोप बढ़ने की स्थिति में उपरोक्त स्प्रे दोवारा उपयोग करें।
बटियागढ़ से संतोष सिंह ठाकुर