विदिशा जिला ब्यूरो मुकेश चतुर्वेदी
वेदान्त आश्रम में समायोजित एकादश दिवसीय श्री राम कथा व लक्ष्मीनारायण महायज्ञ के “द्वितीय दिवस में श्री रामकथा पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए काशीपीधी- श्वर स्वामी डॉ. रामकमल दास वेदान्ती महाराज ने कहा कि व्यक्ति को सदैव विनम्र रहना चाहिए। जो लोग धन वैभव पद प्रतिष्ठा को प्राप्त कर गरीब व दीन दुखी लोगों को अपशब्दों का प्रयोग कर उन्हें अपमानित करते हैं। उन्हें धार्मिक कभी भी नहीं कहा जा सकता। मनुष्य को अच्छी व बुरी दोनों परिस्थियों में ईश्वर को स्मरण करते रहना चाहिए।
नारद प्रसंग के माध्यम से स्वामी वेदान्ती ने अभिमान को सारी बुराइयों की जड़ बताया | महर्षि नारद जैसा ऋषि न तो कभी हुआ न ही हो सकता है। किन्तु वे अभिमान के कारण शिव से स्पर्धा कर बैठे। इस कारण भगवान ने उन्हें मुनि से बंदर बना दिया। फिर वो माया की प्रतिछवि विश्वमोहिनी को प्राप्त कर नहीं पाये। अपितु अपनी कीर्ति पर भी बट्टा लगा बैठे।
सती प्रसंग के माध्यम से स्वामी वेदान्ती ने बताया कि हमें ईश्वर में हद विश्वास रखते हुए बड़ी निया के साथ कथा श्रवण करना चाहिए। हमें कथा के माध्यम से ही ईश्वर की महिमा का ज्ञान होता है। सती जी ने अगस्त के द्वारा होने वाली कथा को ध्यान से नहीं सुना इसलिए लोग के वियोग में रोते हुए राम पर संदेह कर बैठी। फिर उन्होंने वह किया जो स्त्री को नहीं करना चाहिए, परपुरुष की पत्ति का की रूप धारण करने से स्त्री की चारित्रिक गरिमा गिर जाती है। शिव ने उनका त्याग कर दिया। जो आचरण व्यवहार अपने धर्म के अनुसार न हो उसका त्याग करने में ही भलाई है।