राजेन्द्र सिंह जादौन लेखक,विचारक,पत्रकार
देश की आर्थिक सेहत सुधारने के नाम पर केंद्र सरकार द्वारा लिए जा रहे ताबड़तोड़ फैसले से आम आदमी खासा परेशान है ।डीजल औऱ रसोई गैस के दामो में लगातार इज़ाफ़ा ,यक़ीनन महँगाई की आग को औऱ सुलगा रहा है ।
चाय बेचने वाला आज देश का प्रधानमंत्री है पर जिस गरीबी के सफ़र को वो तय कर यहाँ तक आये है उस गरीबी और गरीब की उन्हें कोई फ़िक्र नही है । उन्हें सत्ता औऱ लग्ज़री ज़िन्दगी ने अपने महो में फसा लिया है ।और सरकार अमीर एवं कॉर्पोरेटर को फायदा पहुँचा रही है ।
इस अर्थनीति के चलते आम आदमी की ज़िंदगी नरक बनती जा रही है । पिछले दो साल में महँगाई दर ने सारे रिकार्ड तोड़ दिए है । अमीर आदमी को यक़ीनन महंगाई से कोई फर्क नही पड़ता लेक़िन गरीब की ज़िंदगी फाके उड़ा रही है ।
विपक्ष के बिखराव औऱ खराब सियासी हालात ने कमरतोड़ महंगाई के प्रश्न पर जनमानस के रोष की अभिव्यक्ति को अत्यंत असहज कर दिया है ।
अमीर तबका औऱ अमीर होने की वासना ख़ातिर आम आदमी को निचोड़ रहा है । महंगाई के प्रश्न पर आम आदमी का रोष इसलिए भी राजनीतिक जोर नही पकड़ रहा हर क्योंकि सभी राजनीतिक दलों के नेताओ का चरित्र भी कॉर्पोरेटर परस्त हो चला है ।
वैसे तो भारत की अर्थव्यवस्था अब बिचौलियों ,सटोरियों और बड़े व्यापारियों के हाथों में खेल रही है ।अपने खून पसीने से सींचकर कर उत्पादन करने वाले किसान की कमर भी कर्ज के बोझ में टूटी जा रही है । बीते दो वर्ष के दौरान देश का किसान और गरीब हुआ है । जबकि उसके द्वारा उत्पाद की गई खाद्य सामग्री में भारी इज़ाफ़ा हुआ है ।और ये मुनाफा अमीरों औऱ उद्योगपतियो की जेब मे चला गया ।
देश के आम आदमी से केंद्र की भाजपा सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने के नाम पर जो खेल खेला है उससे गरीब और गरीब हुआ है और अमीर और अमीर ।
भाजपा सरकार ने विकास के नाम पर विनाश की ऐसी व्यवस्था खड़ी कर दी है कि अब अर्थशास्त्री भी इसके जवाब नही दे पा रहे है । जिसका नतीजा ये की काली राजनीति के काले धंधे के साथ अवैध समीकरण भारत के लोकतंत्र और राज व्यवस्था का ख़ास चेहरा बन गया है ।