सूर्य, चंद्र और सुषुम्ना स्वर
सर्वप्रथम हाथों द्वारा नाक के छिद्रों से बाहर निकलती हुई श्वास को महसूस करने का प्रयत्न कीजिए। देखिए कि कौन से छिद्र से श्वास बाहर निकल रही है। स्वरोदय विज्ञान के अनुसार अगर श्वास दाहिने छिद्र से बाहर निकल रही है तो यह सूर्य स्वर होगा। इसके विपरीत यदि श्वास बाएँ छिद्र से निकल रही है तो यह चंद्र स्वरहोगा एवं यदि जब दोनों छिद्रों से निःश्वास निकलता महसूस करें तो यह सुषुम्ना स्वर कहलाएगा। श्वास के बाहर निकलने की उपरोक्त तीनों क्रियाएँ ही स्वरोदय विज्ञान का आधार हैं। सूर्य स्वर पुरुष प्रधान है। इसका रंग काला है। यह शिव स्वरूप है, इसके विपरीत चंद्र स्वर स्त्री प्रधान है एवं इसका रंग गोरा है, यहशक्ति अर्थात् पार्वती का रूप है। इड़ा नाड़ी शरीर के बाईं तरफ स्थित है तथा पिंगला नाड़ी दाहिनी तरफ अर्थात् इड़ा नाड़ी में चंद्र स्वर स्थित रहता है और पिंगला नाड़ी में सूर्य स्वर। सुषुम्ना मध्य में स्थित है, अतः दोनों ओर से श्वास निकले वह सुषम्ना स्वर कहलाएगा।
स्वर को पहचानने की सरल विधियाँ
(1) शांत भाव से मन एकाग्र करके बैठ जाएँ। अपने दाएँ हाथ को नाक छिद्रों के पास ले जाएँ। तर्जनी अँगुली छिद्रों के नीचे रखकर श्वास बाहर फेंकिए। ऐसा करने पर आपको किसी एक छिद्र से श्वास का अधिक स्पर्श होगा। जिस तरफ के छिद्र से श्वास निकले, बस वही स्वर चल रहा है।
(2) एक छिद्र से अधिक एवं दूसरे छिद्र से कम वेग का श्वास निकलता प्रतीत हो तो यह सुषुम्ना के साथ मुख्य स्वर कहलाएगा।
(3) एक अन्य विधि के अनुसार आईने को नासाछिद्रों के नीचे रखें। जिस तरफ के छिद्र के नीचे काँच पर वाष्प के कण दिखाई दें, वही स्वर चालू समझें।
जीवन में स्वर का चमत्कार
स्वर विज्ञान अपने आप में दुनिया का महानतम ज्योतिष विज्ञान है जिसके संकेत कभी गलत नहीं जाते। शरीर की मानसिक और शारीरिक क्रियाओं से लेकर दैवीय सम्पर्कों और परिवेशीय घटनाओं तक को प्रभावित करने की क्षमता रखने वाला स्वर विज्ञान दुनिया के प्रत्येक व्यक्ति के जीवन के लिए महत्त्वपूर्णहै। स्वर विज्ञान का सहारा लेकर आप जीवन को नई दिशा दृष्टि दे सकते हैं। दिव्य जीवन का निर्माण कर सकते हैं, लौकिक एवं पारलौकिक यात्रा को सफल बना सकते हैं। यही नहीं तो आप अपने सम्पर्क में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति और क्षेत्र की धाराओं तक को बदल सकने का सामर्थ्य पा जाते हैं। अपनी नाक के दो छिद्र होते हैं। इनमें से सामान्य अवस्था में एक ही छिद्र से हवा का आवागमन होता रहता है। कभी दायां तो कभी बांया। जिस समय स्वर बदलता है उस समय कुछ सैकण्ड के लिए दोनों नाक में हवा निकलती प्रतीत होती है। इसके अलावा कभी
कभी सुषुम्ना नाड़ी के चलते समय दोनों नासिक छिद्रों से हवा निकलती है। दोनों तरफ सांस निकलने का समय योगियों के लिए योग मार्ग में प्रवेश करने का समय होता है। बांयी तरफ सांस आवागमन का मतलब है आपके शरीर की इड़ा नाड़ी में वायु प्रवाह है। इसके विपरीत दांयी नाड़ी पिंगला है। दोनों के मध्य सुषुम्ना नाड़ी का स्वर प्रवाह होता है। अपनी नाक से निकलने वाली साँस को परखने मात्र से आप जीवन के कई कार्यों को बेहतर बना सकते हैं। सांस का संबंध तिथियों और वारों से जोड़कर इसे और अधिक आसान बना दिया गया है। जिस तिथि को जो सांस होना चाहिए, वही यदि होगा तो आपका दिन अच्छा जाएगा। इसके विपरीत होने पर आपका दिन बिगड़ा ही रहेगा। इसलिये साँस पर ध्यान दें और जीवन विकास की यात्रा को गति दें। मंगल, शनि और रवि का संबंध सूर्य स्वर से है जबकि शेष का संबंध चन्द्र स्वर से। आपके दांये नथुने से निकलने वाली सांस पिंगला है। इस स्वर को सूर्य स्वर कहा जाता है। यह गरम होती है। जबकि बांयी ओर से निकलने वाले स्वर को इड़ा नाड़ी का स्वर कहा जाता है। इसका संबंध चन्द्र से है और यह स्वर ठण्डा है।
चन्द्र स्वर से मिलेगी कार्य में सफलता
समस्त प्राणियों में जीवित रहने के लिए श्वास प्रक्रिया आवश्यक होती है। इसमें जीवनदायिनी ऑक्सीजन गैस ग्रहण करके दूषित कार्बन डाई ऑक्साइड गैस का उत्सर्जन किया जाता है। मनुष्यों में श्वास प्रक्रिया के लिए नाक में बने हुए दो नासा छिद्र सहयोग करते हैं। एक नासा छिद्र से श्वास का आगमन होता है तो दूसरे छिद्र से श्वास का उत्सर्जन होता है। यह क्रमस्वतः ही परिवर्तित होता रहता है। ज्योतिष शास्त्र में स्वरोदय विज्ञान इस बात को स्पष्ट करता है कि यदि नासा छिद्रों की श्वास प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए कोई कार्य किया जाये तो उसमें अपेक्षित सफलता अवश्य प्राप्त होती है। नासिका के दाहिने छिद्र अथवा बाएं छिद्र से श्वास आगमन को स्वरचलना” कहा जाता है। नासिका केदाहिने छिद्र से चलने वाले स्वर को “सूर्य स्वर” और बाएं छिद्र से चलने वाले स्वर को “चन्द्र स्वर” कहते हैं। सूर्य स्वर को भगवान शिव का जबकि चन्द्र स्वर को शक्ति की आराध्य देवी माँ का प्रतीक माना जाता है। स्वर शास्त्र के अनुसार वृष, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन राशियां चन्द्र स्वर से तथा मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु एवं कुम्भ राशियाँ सूर्य स्वर से मान्य होती हैं। चन्द्र स्वर में श्वास चलने को “इडा” और सूर्य स्वर में श्वास चलने को “पिंगला” कहा जाता है। दोनों छिद्रों से चलने वाली श्वास
प्रक्रिया “सुषुम्ना स्वर” कहलाती है। स्वरोदय विज्ञान की मान्यता के अनुसार पूर्व और उत्तर दिशा में चन्द्र तथा पश्चिम और दक्षिण दिशा में सूर्य रहता है। इस कारण जब नासिका से सूर्य स्वर चले तो पश्चिम और दक्षिण दिशा में तथा जब नासिका से चन्द्र स्वरचले तो पूर्व और उत्तर दिशा में जाना अशुभ फल देने वाला होता है। चन्द्र स्वर चलने पर बायां पैर और सूर्य स्वर चलने पर दाहिना पैर आगे बढाकर यात्रा करना शुभ होता है। चन्द्र स्वर चलते समय किये गए समस्त कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए यदि स्त्री के साथ प्रसंग के आरम्भ में पुरुष का सूर्य स्वर चले तथा समापन पर चन्द्रस्वर चले तो शुभ होता है। सूर्य स्वर चलने के दौरान अध्ययन एवं अध्यापन करना, शास्त्रों का पठन-पाठन, पशुओं की खरीद-फरोख्त, औषधि सेवन, शारीरिक श्रम, तंत्र-मन्त्र साधना, वाहन का शुभारम्भ करना जैसे कार्य किये जा सकते हैं। जबकि चन्द्र स्वर चलते समय गृह प्रवेश, शिक्षा का शुभारम्भ, धार्मिक अनुष्ठान, नए वस्त्र और आभूषण धारण करना, भू-संपत्ति का क्रय-विक्रय, नए व्यापार का शुभारम्भ, नवीन मित्र सम्बन्ध बनाना, कृषि कार्य औरपारस्परिक विवादों का निस्तारण करना जैसे कार्य शुभ फल देने वाले होते हैं।
स्वर विज्ञान से भविष्य का ज्ञान
प्राचीन काल में स्वर विज्ञान से भी फल कथन किया जाता था। इसका आधार श्वास-प्रश्वास (स्वर) को बनाया जाता है। स्वर तीन प्रकार के होते हैं: दायां स्वरः मेरुदंड के दायें भाग से नासिका के दायें छिद्र में आई हुई प्राण वायु का नाम दायां स्वर है। बायां स्वरः मेरुदंड के बायें भाग से नासिका के बायें छिद्र में आई हुई प्राण वायु का नाम बायां स्वर है। सुषुम्ना स्वरः मेरुदंड से नासिका छिद्रों में आई हुई प्राण वायु को सुषुम्ना स्वर कहते हैं। यमुना, सूर्य और पिंगला दायें स्वर के तथा गंगा, चंद्र और इंगला बायें तथा स्वर के नाम हैं। गंगा और यमुना नाड़ियों के बीच बहने वाले स्वर का नाम सुषुम्ना है। उपर्युक्त तीनों नाड़ियों का संगम भौंहों के बीच होता है जहां पर दैवी शक्ति वाले लोग शक्ति की आराधना के लिए ध्यान केंद्रित करते हैं। दायां स्वर पुल्लिंग (शिव) और बायां स्त्रीलिंग (शक्ति) का प्रतीक है। अतः प्रिय औरस्थिर कार्य, शक्ति के प्रवाह में अर्थात चंद्र स्वर में और अप्रिय तथा अस्थिर कार्य शिव के प्रवाह में अर्थात सूर्य स्वर में होते हैं। सुषुम्ना स्वर का उदय शिव और शक्ति के योग से होता है। इसलिए व्यावहारिक कार्यों को यह होने ही नहीं देता है, किंतु ईश्वर के भजन में अत्यंत सहायक होता है। भवसागर को पार करने में यह जहाज की तरह सहायता करता है। दीर्घायु की परीक्षा यदि सारी रात सूर्य स्वर तथा सारे दिन चंद्र स्वर चले, तो समझना चाहिए कि दीर्घायु
प्राप्त होगी तथा शरीर निरोग रहेगा और दैहिक, दैविक और भौतिक ताप किसी तरह नहीं सताएंगे। किसी महीने की प्रतिपदा को सूर्योदय से संध्या तक सूर्य स्वर चलता रहे, तो समझना चाहिए कि एक माह तक शरीर अस्वस्थ रहेगा। छठे वर्ष मृत्यु भी समीप आजाएगी। इंद्रिय शक्ति का ह्रास होगा और विभिन्न प्रकार की चिंताएं सताएंगी। विवाह संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्नः विवाह होगा या नहीं? यदि होगा, तो कब? उत्तरः यदि प्रश्नकर्ता ज्योतिषी के दायीं ओर बैठकर प्रश्न करे और उत्तरदाता का दायां स्वर चलता हो, तो विवाह शीघ्र होगा। इसके विपरीत यदि प्रश्नकर्ता उत्तरदाता के बायीं ओर बैठकर प्रश्न करे और उस समय उत्तरदाता का दायां स्वर चलता हो, तो विवाह में विलंब होगा। यदि प्रश्नकर्ताज्योतिषी के बायीं और बैठकर प्रश्न करे और उस समय ज्योतिषी का भी बायां स्वर प्रवाहित हो रहा हो, तो विवाह नहीं होगा। यदि प्रश्नकर्ता दायीं अथवा बायीं ओर अर्थात किसी भी तरफ बैठ कर प्रश्न करे और ज्योतिषी का सुषुम्ना स्वर चलता हो, तो विवाह नहीं होगा। यदि प्रश्नकर्ता का बायां और ज्योतिषी का दायां स्वर चलता हो, तो कुछ दिनों के पश्चात विवाह हो जाएगा। यदि प्रश्नकर्ता का बायां और स्वरज्ञानी का सुषुम्ना स्वर चलता हो, तो विवाह नहीं होगा। यदि प्रश्नकर्ता और ज्योतिषी दोनों का ही सुषुम्ना स्वर चलता हो, तो विवाह की कौन कहे, बात तक नहीं होगी। यदि प्रश्नकर्ता का सुषुम्ना और ज्योतिषी का दायां स्वर चल रहा हो, तो विवाह कुछ समय के पश्चात अवश्य होगा।
चोरी से संबंधित प्रश्नोत्तर प्रश्नः
चोरी गई वस्तु मिलेगी या नहीं?
उत्तरः यदि प्रश्नकर्ता का दायां औरज्योतिषी का बायां स्वर चल रहा हो, तो चोरी गई वस्तु कठिनाई से मिलेगी। ऐसी अवस्था में कुछ सख्ती से काम लेना होगा। यदि प्रश्नकर्ता का बायां और स्वरज्ञानी का दायां स्वर चलता हो, तो वस्तु मिलेगी अवश्य, किंतु देर से। यदि प्रश्नकर्ता और उत्तरदाता दोनों का बायां स्वर चलता हो, तो वस्तु नहीं मिलेगी अथवा कठिनाई से मिलेगी। यदि प्रश्नकर्ता का सुषुम्ना स्वर औरज्योतिषी का बायां स्वर चलता हो, तो वस्तु का पता नहीं चलेगा, मिलना तो दूर की बात है। यदि प्रश्नकर्ता और उत्तरदाता दोनों का सुषुम्ना स्वर चले, तो यह अत्यंत खराब योग है- वस्तु कदापि नहीं मिलेगी। यदि प्रश्नकर्ता का बायां औरज्योतिषी का सुषुम्ना स्वर चलता हो तो वस्तुनहीं मिलेगी। पुत्र संतान और स्वर विज्ञान | जबस्त्री का बायां और पुरुष का दायां स्वर चल रहा हो और पृथ्वी तथा जल (वायु व तेज तत्व) के संयोग में अर्द्धरात्रि के समय गर्भाधान किया गया हो, तो पुत्र उत्पन्न होगा। ऋतुकाल के बाद की चैथी रात में गर्भ रहने से अल्पायु तथा दरिद्र पुत्रपैदा होता है। ऋतुकाल के बाद की छठी रात में गर्भ रहने से साधारण आयु वाला पुत्र उत्पन्न होता है। ऋतुकाल के बाद की आठवीं रात में गर्भ रहने से ऐश्वर्यशाली पुत्र पैदा होता है। ऋतुकाल के बाद की दसवीं रात्रि में गर्भ रहने पर चतुर पुत्र पैदा होता है। ऋतु काल के बाद की सोलहवीं रात में गर्भ रहने पर सर्वगुण संपन्न पुत्र पैदा होता है।
अद्भुत और रहस्यमयी विज्ञान!
स्वर विज्ञान केवल श्वास की दिशा जानने का अभ्यास नहीं, बल्कि जीवन के अदृश्य रहस्यों को समझने की एक दिव्य कुंजी है।
जिस श्वास को हम अनजाने में लेते हैं, वही श्वास जब ज्ञान और जागरूकता से जुड़ता है
तो वो बन जाता है स्वर, और यही स्वर बनाता है भाग्य का संचालनकर्ता।
चंद्र स्वर में कार्य, सूर्य स्वर में युद्ध,
शून्य स्वर में मौन यही है स्वर का मर्म।
न कोई कठिन साधना, न कोई मंत्र-जाप
बस श्वास को पहचानो, और समय के साथ स्वयं को भी।
स्वरोदय ज्ञान = जीवन की दिशा बदलने की कला।
जय स्वर्विज्ञान। जय सनातन।