कालापीपल(बबलू जायसवाल)मप्र विधानसभा चुनाव में इस बार सभी राजनीतिक दलों की निगाहें कालापीपल विधानसभा सीट पर है। इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा है। कांग्रेस ने एक बार फिर से वर्तमान विधायक कुणाल चौधरी पर भरोसा जताया है। जबकि बीजेपी ने नए चेहरे घनश्याम चंद्रवंशी को मैदान पर उतारा है।यह सीट इसलिए भी काफी अहम है क्योंकि राहुल गांधी ने मप्र में चुनावी प्रचार की शुरूआत इसी विधानसभा सीट से की थी।पहले इस सीट पर बीजेपी का कब्जा था,लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इस सीट को बीजेपी से छीन लिया।कालापीपल विधानसभा सीट पर खाती समाज का खासा दबदबा माना जाता है।यहां पर करीब 32 हजार खाती वोटर्स हैं।साथ ही मेवाड़ा समाज के करीब 18 हजार वोटर्स हैं।परमार समाज के करीब 16 हजार वोटर्स इस क्षेत्र में अच्छा खासा प्रभाव रखते हैं।
कालापीपल में दो बार भाजपा,एक बार कांग्रेस
कालापीपल विधानसभा सीट के राजनीतिक इतिहास की बात की जाए,तो ये सीट-2008 में अस्तित्व में आई थी।गुलाना विधानसभा और शुजालपुर विधानसभा से मिलकर साल 2008 में कालापीपल को विधानसभा सीट बना दी गई। अब तक यहां बीते तीन चुनाव में 2 में बीजेपी को जीत मिली है।जबकि एक बार कांग्रेस को मौका मिला है।
साल 2008 को हुए चुनाव में यहां से बीजेपी के बाबूलाल वर्मा ने कांग्रेस के सरोज मनोरंजन सिंह को करीब 13 हजार वोटों से हराया।वहीं 2013 के चुनाव में बीजेपी ने इंदरसिंह परमार को मैदान में उतारा, उन्होंने कांग्रेस के केदार सिंह मंडलोई को करीब 9 हजार वोटों से हराया।
वहीं साल 2018 के विधानसभा चुनाव की बात की जाए, तो इस सीट पर कांग्रेस ने कुणाल चौधरी को टिकट दिया। वहीं बीजेपी ने पूर्व विधायक बाबूलाल वर्मा को मैदान में उतारा था। कांग्रेस के कुणाल को 86,249 वोट मिले, जबकि बाबूलाल के खाते में करीब 72,550 वोट आए। इस तरह कुणाल ने 13,699 वोटों से जीत हासिल की।
अब देखना होगा….कि कांग्रेस पिछली बार की तरह कमाल दिखा पाती है या नहीं,क्योंकि जिला पंचायत के पूर्व सदस्य चतुर्भुज तोमर कांग्रेस से बगावत कर यहां निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं।कालापीपल विधानसभा में इस बार त्रिकोणीय मुकाबला होना लगभग तय माना जा रहा है।यहां के तीनों उम्मीदवार खाती समाज है।