जल, जंगल और जमीन को लेकर आदिवासियों का संघर्ष सदियों पुराना है और आज भी चला आ रहा है। ऐसे ही एक विद्रोह के जनक की आज पुण्यतिथि है। आदिवासियों के भगवान बिरसा मुंडा का आज ही के दिन साल 1900 में रांची की जेल में निधन हो गया था।
बिरसा मुंडा की उम्र भले ही छोटी थी, लेकिन कम उम्र में ही वे आदिवासियों के भगवान बन गए थे। 1895 में बिरसा ने अंग्रेजों द्वारा लागू की गई जमींदारी और राजस्व व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई छेड़ी। बिरसा ने सूदखोर महाजनों के खिलाफ भी बगावत की। ये महाजन कर्ज के बदले आदिवासियों की जमीन पर कब्जा कर लेते थे। बिरसा मुंडा के निधन तक चला ये विद्रोह ‘उलगुलान’ नाम से जाना जाता है। और आजादी के अमृत काल के 75 साल के बाद भी आदिवासियों की लड़कियों से शादी कर उनके नाम पर जमीन खरीद कर आदिवासियों का फायदा उठाया जा रहा है आदिवासियों की जमीन हड़पी जा रही है अगस्त 1897 में बिरसा ने अपने साथ करीब 400 आदिवासियों को लेकर एक थाने पर हमला बोल दिया। जनवरी 1900 में मुंडा और अंग्रेजों के बीच आखिरी लड़ाई हुई। रांची के पास दूम्बरी पहाड़ी पर हुई इस लड़ाई में हजारों आदिवासियों ने अंग्रेजों का सामना किया, लेकिन तोप और बंदूकों के सामने तीर-कमान जवाब देने लगे। बहुत से लोग मारे गए और कई लोगों को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया।
हरदा से श्रीराम कुशवाह की रिपोर्ट