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एक ही घड़ी मुहूर्त में जन्म लेने पर भी सबके कर्म और भाग्य अलग-अलग क्यों ?

by Manish Gautam Chiefeditor
September 28, 2024
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एक ही घड़ी मुहूर्त में जन्म लेने पर भी सबके कर्म और भाग्य अलग-अलग क्यों ?
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एक ही घड़ी मुहूर्त में जन्म लेने पर भी सबके कर्म और भाग्य अलग-अलग क्यों ?

🔹एक प्रेरक कथा 🔹

एक बार एक राजा ने विद्वान ज्योतिषियों और ज्योतिष प्रेमियों की सभा बुलाकर प्रश्न किया कि,

मेरी जन्म पत्रिका के अनुसार मेरा राजा बनने का योग था मैं राजा बना ,

किन्तु उसी घड़ी मुहूर्त में अनेक जातकों ने जन्म लिया होगा जो राजा नहीं बन सके क्यों ?

इसका क्या कारण है ?

राजा के इस प्रश्न से सब निरुत्तर हो गये ..क्या जबाब दें कि एक ही घड़ी मुहूर्त में जन्म लेने पर भी सबके भाग्य अलग अलग क्यों हैं ।

सब सोच में पड़ गये। कि अचानक एक वृद्ध खड़े हुये और बोले महाराज की जय हो!

आपके प्रश्न का उत्तर भला कौन दे सकता है , आप यहाँ से कुछ दूर घने जंगल में यदि जाएँ तो,

वहां पर आपको एक महात्मा मिलेंगे उनसे आपको उत्तर मिल सकता है ।

राजा की जिज्ञासा बढ़ी और घोर जंगल में जाकर देखा कि एक महात्मा आग के ढेर के पास बैठ कर अंगार (गरमा गरम कोयला ) खाने में व्यस्त हैं ,

सहमे हुए राजा ने महात्मा से जैसे ही प्रश्न पूछा महात्मा ने क्रोधित होकर कहा-

“तेरे प्रश्न का उत्तर देने के लिए मेरे पास समय नहीं है मैं भूख से पीड़ित हूँ ।

तेरे प्रश्न का उत्तर यहां से कुछ आगे पहाड़ियों के बीच एक और महात्मा हैं वे दे सकते हैं ।”

राजा की जिज्ञासा और बढ़ गयी,

पुनः अंधकार और पहाड़ी मार्ग पार कर बड़ी कठिनाइयों से राजा दूसरे महात्मा के पास पहुंचा किन्तु यह क्या महात्मा को देखकर राजा हक्का बक्का रह गया ,दृश्य ही कुछ ऐसा था,

वे महात्मा अपना ही माँस चिमटे से नोच-नोच कर खा रहे थे।

राजा को देखते ही महात्मा ने भी डांटते हुए कहा

मैं भूख से बेचैन हूँ मेरे पास इतना समय नहीं है

आगे जाओ पहाड़ियों के उस पार एक आदिवासी गाँव में एक बालक जन्म लेने वाला है ,

जो कुछ ही देर तक जिन्दा रहेगा सूर्योदय से पूर्व वहाँ पहुँचो वह बालक तेरे प्रश्न का उत्तर दे सकता है

सुनकर राजा बड़ा बेचैन हुआ बड़ी अजब पहेली बन गया मेरा प्रश्न,

उत्सुकता प्रबल थी कुछ भी हो यहाँ तक पहुँच चुका हूँ वहाँ भी जाकर देखता हूँ क्या होता है ।

राजा पुनः कठिन मार्ग पार कर किसी तरह प्रातः होने तक उस गाँव में पहुंचा, गाँव में पता किया और उस दंपति के घर पहुंचकर सारी बात कही और शीघ्रता से बच्चा लाने को कहा

जैसे ही बच्चा हुआ, दम्पत्ति ने नाल सहित बालक राजा के सम्मुख उपस्थित किया ।

राजा को देखते ही बालक ने हँसते हुए कहा राजन् ! मेरे पास भी समय नहीं है ,किन्तु अपना उत्तर सुनो लो –

तुम,मैं और दोनों महात्मा सात जन्म पहले चारों भाई व राजकुमार थे।

एक बार शिकार खेलते-खेलते हम जंगल में भटक गए। तीन दिन तक भूखे प्यासे भटकते रहे।

अचानक हम चारों भाइयों को आटे की एक पोटली मिली जैसे-तैसे हमने चार बाटी सेकीं और अपनी-अपनी बाटी लेकर खाने बैठे ही थे कि भूख प्यास से तड़पते हुए एक महात्मा आ गये।

अंगार खाने वाले भइया से उन्होंने कहा –

बालक बोला “अंतिम आशा लिये वो महात्मा , हे राजन !

आपके पास भी आये, दया की याचना की, सुनते ही आपने उनकी दशा पर दया करते हुये ख़ुशी से अपनी बाटी में से आधी बाटी आदर सहित उन महात्मा को दे दी।

बाटी पाकर महात्मा बड़े खुश हुए और जाते हुए बोले

“तुम्हारा भविष्य तुम्हारे कर्म और व्यवहार से फलेगा।”

बालक ने कहा “इस प्रकार हे राजन ! उस घटना के आधार पर हम अपना भोग, भोग रहे हैं।
धरती पर एक समय में अनेकों फूल खिलते हैं किन्तु सबके फल रूप, गुण,आकार-प्रकार,स्वाद में भिन्न होते हैं।”

इतना कहकर वह बालक मर गया। राजा अपने महल में पहुंचा और माना कि शास्त्र भी तीन प्रकार के हैं-ज्योतिष शास्त्र, कर्तव्य शास्त्र और व्यवहार शास्त्र। एक ही मुहूर्त में अनेकों जातक जन्मते हैं किन्तु सब अपना किया-दिया-लिया ही पाते हैं। जैसा भोग भोगना होगा वैसे ही योग बनेंगे। जैसा योग होगा वैसा ही भोग भोगना पड़ेगा यही है जीवन।

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