नगरवासियों ने जगह-जगह बटां जगन्नाथ का भात, सूखा मेवा खीर, शरबत ठंडे पानी से किया जगन्नाथ के भक्तों का स्वागत*
*नगर में पहली बार वाचन हो रहे 4 उपनिषद और 18 पुराण शोभायात्रा में हुए शामिल*
*ऑटो चालकों द्वारा कलश यात्रा में शामिल महिलाओं को निशुल्क उनके गंतव्य तक छोड़ा*
कलश यात्रा का एक छोर स्टेशन पर था तो आखिरी छोर जय स्तंभ
एम पी न्यूज़ कास्ट जिला ब्यूरो मुकेश चतुर्वेदी की खास रिपोर्ट
*गंजबासौदा।* 1200 किलोमीटर की पदयात्रा के साथ उड़ीसा जगन्नाथपुरी से आए महाप्रभु जगन्नाथ के नगर आगमन पर स्वागत सत्कार में जो श्रद्धा, भक्ति और आस्था का सैलाब देखने मिला था वही सैलाब आज 85 दिन बाद प्राण प्रतिष्ठा के लिए बुधवार को नौलखी धाम पहुंचे महाप्रभु जगन्नाथ की विराट भव्य और दिव्य ऐतिहासिक कलश यात्रा के दौरान देखने मिला। समिति द्वारा कलश यात्रा मार्ग को संक्षिप्त करने के बाद भी स्वागत का सिलसिला ऐसा चला कि स्टेशन रोड़ स्थित नौलखी मंदिर से प्रारंभ हुई 7 किलोमीटर की कलश यात्रा को वेत्रवती घाट स्थित नौलखी आश्रम तक पहुंचने में 7 घंटे लग गए। शहर के हर वर्ग ने स्वागत में ऐसे पलक पांवडे़ बिछाए कि जहां सड़कें फूलों से बिछ गईं वहीं मुस्लिम समाज ने सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल कायम करते हुए महाप्रभु जगन्नाथ जी के साथ-साथ रथों पर सवार संतों के अलावा कलश यात्रा में शामिल श्रद्धालुओं का स्वागत करते हुए फूल बरसाए। नगरवासियों सहित विभिन्न सामाजिक संगठनों ने ने जगह-जगह जगन्नाथ का भात, सूखा मेवा, खीर, शरबत और ठंडे पानी से जगन्नाथ के भक्तों का आग्रह के साथ जमकर स्वागत किया। शोभायात्रा के लिए समिति ने करीब 2100 कलशों की व्यवस्था की लेकिन कलश यात्रा को लेकर महिलाओं में इतना उत्साह था कि करीब 5 हजार महिलाओं के कलश यात्रा में आने से कलश कम पड़ गए। जिन महिलाओं को कलश नहीं मिल पाए वह आम के पत्ते और नारियल लेकर ही यात्रा में शामिल हुईं। नगर में किसी धार्मिक आयोजन में पहली बार वाचन हो रहे 4 उपनिषद और 18 पुराणों को शोभायात्रा में यजमान सिर पर धारण करके चल रहे थे। महायज्ञ के मुख्य यजमान उद्योगपति राकेश मरखेड़कर बाल्मीकि रामायण को सिर पर धारण कर और उनकी धर्मपत्नी मंगल कलश लेकर पर शोभा यात्रा में साथ-साथ चल रहे थे। कलश यात्रा में 10 हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने शामिल होकर शोभा यात्रा को ऐतिहासिक बना दिया। कलश यात्रा के आश्रम पर पहुंचने पर शोभा यात्रा में शामिल सभी श्रद्धालुओं को बूंदी, जगन्नाथ का भात, बालूशाही,पुड़ी सब्जी प्रसादी के रूप में वितरित की गई।
मालूम हो कि वेत्रवती घाट स्थित नौलखी आश्रम पर विराजमान बरसों पुराने भगवान जगदीश स्वामी के विग्रहों के कलेवर बदलने की प्रेरणा मिलने के बाद जगन्नाथपुरी उड़ीसा से 40 भक्तों का एक समूह 40 दिन तक 1200 किलोमीटर की पदयात्रा करते हुए 16 जनवरी को महाप्रभु जगन्नाथ, बलभद्र जी और बहन सुभद्रा जी के नवीन विग्रह को नगर में लेकर आए थे। काशी बनारस और उड़ीसा के आचार्यों द्वारा इन नवीन विग्रहों की प्राण प्रतिष्ठा का शुभ मुहूर्त 10 अप्रैल से दिया गया था इस कारण यह विग्रह स्टेशन रोड़ स्थित नौलखी मंदिर में 85 दिन से विराजमान थे जिनकी भक्ति भाव के साथ प्रतिदिन सेवा की जा रही थी। महाप्रभु जगन्नाथ के अलावा भगवान सीताराम दरबार के साथ-साथ अन्य देव प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा के पहले बुधवार को निकली भव्य कलश यात्रा निकल गई जिसमें फूलों से सजे रथ पर महाप्रभु जगन्नाथ सवार थे। दूसरे रथ में भगवान सीताराम के अलावा अन्य देव प्रतिमाओं के विग्रह रखे हुए थे। महाप्रभु जगन्नाथ की कलश यात्रा का नगर के सभी सामाजिक संगठनों ने सहित जनप्रतिनिधियों के अलावा मुस्लिम समाज एवं महिला संगठनों के द्वारा कलश यात्रा का भव्य स्वागत किया गया।
*साकेतवासी महंतों के चित्र और तीर्थ क्षेत्र के साधु संत हुए रथों पर सवार*
शोभायात्रा में तीन बड़े रथ,सात बग्गियां, दो घोड़ सवार, एक बैंड, दो डीजे सहित नगर सहित ग्रामीण क्षेत्र की भजन मंडलियाँ शामिल थी। नौलखी के तपस्वी सिद्ध संत साकेतवासी जगन्नाथ दास जी महाराज सहित उनके बाद रहे अन्य महंतों के भी चित्र पर बग्गियों पर विराजमान थे। अन्य रथों पर विराजे तीर्थ क्षेत्र से आए साधु संत एवं यज्ञ के प्रधान प्रतिष्ठाचार्य मथुरा प्रसाद शास्त्री शोभायमान थे। जबकि महंत राम मनोहर दास महाराज, उप यज्ञाचार्य पंडित केशव शास्त्री सहित जनप्रतिनिधि गणमान्य नागरिक शोभायात्रा में पैदल साथ-साथ चल रहे थे।
*अयोध्या से आए स्वामी रत्नेश प्रपन्नाचार्य द्वारा राम कथा का वाचन आज से*
गुरुवार 11 अप्रैल से 20 अप्रैल तक चलने वाली संगीतमय राम कथा का वचन अयोध्या से आए तथा कथा व्यास स्वामी रत्नेश प्रपन्नाचार्य जी द्वारा किया जाएगा। रत्नेश जी अयोध्या सहित देश के विभिन्न प्रांतों में राम कथा के संदर्भों को केंद्र में रखते हुए जनमानस के हृदय पटल पर प्रभावित करने वाले अद्वितीय वक्त के रूप में प्रसिद्ध हैं। संस्कृत और व्याकरण के विशेष मर्मज्ञ भी माने जाते हैं। कथा प्रतिदिन दोपहर 3 से प्रारंभ होगी जो की शाम 6 बजे तक चलेगी। 11 अप्रैल को यज्ञशाला में पंचांग पूजन मंडप प्रवेश होगा।