रिपोर्टर सीमा कैथवास
नर्मदापुरम। धार्मिक नगरी में चैत्र नवरात्र पर्व एवं श्रीरामनवमी पर्व मां के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा अर्चना के साथ भव्यता के साथ नवमी पर्व मनाई गई। गुरुवार को श्रीरामनवमी के अवसर पर मां नर्मदा के घाटों पर जगह-जगह जवारे विसर्जन का आयोजन हुआ। इस अवसर पर मंदिरों में कन्या भोजन और भंडारे का भी आयोजन हुआ। बीटीआई आर्ष गुरुकुल के बाजू से स्थित वर्षों पुराना बाबा भारती का मंदिर जो कि माता कमलेश्वरी देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है। यहां पर मौर्यकालीन माता कमलेश्वरी देवी की प्रतिमा स्थापित है। इस जगह का विशेष महत्व है, यहां पर सच्ची आस्था के साथ मांगी गई मन्नतें पूरी होती हैं। गुरुवार को श्रीरामनवमी के अवसर पर माता कमलेश्वरी देवी के मंदिर में कन्या भोजन एवं भंडारे का आयोजन हुआ। जिसमें शहर के गणमान्य नागरिक, पत्रकारगण उपस्थित हुए और माता का आशीर्वाद प्राप्त किया। विगत 40 वर्षों से माता कमलेश्वरी देवी और बाबा भारती सहित माता सरोजिनी योगिनी की सेवा कर पूजा पाठ करने वाले पंडित वीरेन्द्र शर्मा बताते हैं कि माता कमलेश्वरी देवी की
प्रतिमा मौर्यकालीन है जो कि लक्ष्मी का अवतार मानी जाती हैं और काले पत्थर से निर्मित हैं। पंडित वीरेन्द्र शर्मा बताते है कि माता कमलेश्वरी देवी की मौर्यकालीन मूर्ति और बीटीआई में स्थापित मंदिर को लेकर भी एक कहानी प्रचलित है। जिसके अनुसार इटारसी के पास ग्राम पथरोटा के पास एक खेत में यह प्रतिमा किसान को मिली थी परंतु खेत से किसान उक्त मूर्ति को नहीं उठा पा रहे थे। यह जानकारी माता सरोजिनी योगिनी को मिली तो वे पथरोटा जाकर खेत से उस मूर्ति को उठाकर ले आई और यहां पर स्थापित किया। मौर्य कालीन प्रतिमा लक्ष्मी का अवतार है जो कि शेर पर विराजमान है, यहां पर सच्ची श्रद्धा से मांगी गई मनोकामना पूरी होती है। पंडित वीरेंद्र शर्मा कहते हैं कि माता कमलेश्वरी देवी के धार्मिक स्थल को अब जीर्णोद्धार की आवश्यकता भी है। प्रकृति प्रेमियों और धर्म प्रेमियों को उक्त स्थल को सुंदर प्राकृतिक वातावरण से परिपूर्ण बनाने के लिए आगे आना चाहिए। पंडित श्री शर्मा ने बताया कि जिले में माता कमलेश्वरी देवी का अन्यत्र कहीं पर मंदिर नहीं है। अतः मौर्यकालीन इस आस्था और धार्मिक स्थल और मंदिर में विराजमान माता कमलेश्वरी देवी के एकमात्र वर्षों पुराने ऐतिहासिक धरोहर को संजोकर रखने के लिए नर्मदापुरम के जनप्रतिनिधियों और धार्मिक जनों को जीर्णोद्धार के लिए आगे आना होगा। जिससे हमारी संस्कृति सभ्यता को सजोने सवारने में अपनी इच्छा शक्ति प्रदान करनी होगी। और इस मौर्यकालीन मां बमलेश्वरी देवी माता के मंदिर को एक धरोहर के रूप में विकसित करने में अपना सहयोग करना चाहिए।